Jindal School of International Affairs
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| Languages | English Hindi |
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श्रीराम चौलिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन के लिए भूटान के दौरे पर हैं। भूटान क्षेत्रफल में भारत का सबसे छोटा पड़ोसी है, परंतु इसका सामरिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह चीनी कब्जे वाले तिब्बत और भारत के बीच ऊंचे हिमालयों में स्थित महत्वपूर्ण मध्यवर्ती देश है। गत 11 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी का वहां चार बार जाना और इसी तरह भूटान के प्रधानमंत्रियों और राजाओं का लगातार भारत में आगमन का क्रम दर्शाता है कि इस संवेदनशील रिश्ते को उचित ही सर्वोच्च राजनीतिक महत्व दिया जा रहा है। भूटान अगर कमजोर और बेसहारा बन जाए तो विस्तारवादी चीन न केवल उसे निगल जाएगा, बल्कि भारत की सीमा पर एक और मोर्चा खोल देगा।
1950 के दशक में तिब्बत में चीन के अतिक्रमण और वर्तमान में नेपाल में चीन के विस्तार को देखते हुए भारत के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि भूटान को चीनी महत्वाकांक्षाओं से बचाकर रखे। एक अद्वितीय हिमालयी बौद्ध राष्ट्र को आक्रामक महाशक्ति चीन के जबरन कब्जे से बचाना कोई किताबी या सैद्धांतिक मुद्दा नहीं है। ‘सीलाइट’ नामक अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान के अनुसार हाल के वर्षों में चीन ने भूटान की पारंपरिक सीमाओं के भीतर कम से कम 22 कृत्रिम गांव बसाए हैं, जो इस छोटे से देश के लगभग दो प्रतिशत भूभाग पर कब्जा हैं। इन चीनी बस्तियों में सड़कें, सैन्य चौकियां और प्रशासनिक केंद्र भी शामिल हैं, जिससे जमीनी स्तर पर ऐसे नए तथ्य अंकित कर दिए गए हैं, जिन्हें नकारना मुश्किल है।
भूटान के साथ सीमा वार्ताओं के अंतर्गत चीन ने नए दावे भी पेश किए हैं, ताकि भूटान की संप्रभुता धीरे-धीरे घिस जाए और चीनी सेना भारत की सीमाओं को घेर ले। 2017 में डोकलाम में अवैध सड़क निर्माण का प्रयास चीन की दीर्घकालिक योजनाओं का नमूना था। इसी खतरे को रोकने के लिए भारतीय सेना ने 73 दिन तक चीनी फौज से आमना-सामना किया था। अंततः चीन को डोकलाम से पीछे हटना पड़ा था।
भूटान के अस्तित्व के लिए चीन के बढ़ते खतरे के चलते भारत भूटानी सेना के लिए रक्षा उपकरणों के साथ प्रशिक्षण की सुविधाएं बढ़ा रहा है।
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| Published Date | 10-11-2025 |
| Category | News |